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Wednesday 2 October 2019

जय जवान, बर्बाद किसान
बापू और जय जवान जय किसान का नारा देने वाले शास्त्री जी को याद करते हुए आज कुछ किसान दिल्ली के गेट तक पहुंचे। ये भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले यहां इकट्ठा हुए। एक साल पहले भी केंद्र सरकार से अपना हक मांगने (पंगा लेने) यहां आए थे। केंद्र सरकार ने उनको राजघाट यानि किसान घाट जाने की अनुमति रात में दी। उनकी सभी मांगों को यथाशीघ्र पूरी करने का आश्वासन दिया। सीधा-साधा किसान राजनीतिज्ञों की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गया(और करता भी क्या) और अपने दिवंगत नेताओं को राजघाट पर राम-राम कर वापस खेत में खटने चला गया।
एक साल बीत गया लेकिन किसानों की एक भी मांग पर अमल नहीं हुआ। इस दरम्यान उल्टा ये हुआ कि बिजली के दाम बढ़ गए, खाद के दाम बढ़ गए, दूध के दाम बढ़ गए, हल्दी-मिर्ची धनिया महंगा हो गया लेकिन उसकी उपज का लाभांश बिचौलिये सरकारों की सरपरस्ती में चट कर गए और कर रहे हैं। प्याज इसका जीता जागता उदाहरण है। मैं कोई भाषण नहीं लिख रहा। हकीकत बयां कर रहा हूं। आंकड़ों के साथ फिर कभी बताऊंगा लेकिन बीस साल पहले की चिंता अब और गहरा गई है। आर्थिक उदारीकरण के दौर में जब डंकल का विरोध छात्र होने के दौरान किया तो बाकी लोगों ने यहां तक कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने भी विकास विरोधी बता हम लोगों को खारिज कर दिया।
तभी खुले बाजार में बिकेगी उच्च शिक्षा से मेरा लेख स्वतंत्र भारत में छपा जो आज जिसने भी पढ़ा अक्षरश: सही साबित करता है लेकिन उस समय उसे खारिज करना हुक्मरानों या उनके नुमाइंदों या सरकारों के अंधभक्तों की मजबूरी थी।
आज भी अधिक कुछ नहीं बदला। किसानों के बीच आज भी गया। मायूसी और लाचारी आज भी उनके चेहरे पर पढ़ी जा सकती है। यही नहीं दुनिया के दुग्ध उत्पादों के लिए बाजार खोलकर अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए रेड कार्पेट बिछा केंद्र सरकार ने देश के किसान को मारने का अंतिम प्रयास शुरू कर दिया है। हाईब्रिड और जीएम सीड ने किसान को अंधीलूट वाले मुनाफाखोर बाजार के बीच में पहले से ही पटख दिया है।
आने वाले समय में ना बीज पर आपका जोर चलेगा, न कीटनाशक दवाइयों पर और न ही रासायनिक खादों पर। ये सब विदेशी कंपनियों के देसी एजेंट आपको मुहैया कराएंगे। और सरकार आर्गेनिक खेती के लिए सब्सिडी का झांसा देकर किसानों को गुमराह करने का काम करेंगी। यानि खेती को भी बड़ी-बड़ी कंपनियां ठेके पर लेकर इच्छानुसार इलाकों में अपनी पसंद की खेती करेंगी और फसलों को मनमनाने दामों पर अपने स्टोर्स में मुहैया कराएंगी। आप और हम बंजर हुए खेतों के बाद मुंह मोड़ती कंपनियों और बेबस सरकारों का मुंह ताकने के सिवाय कुछ नहीं कर पाएंगे। काश! ऐसा ना हो तो बेहतर है।